लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) के फायदे
लहसुन (Allium sativum) भारत में बड़े स्तर पर बोई जाने वाली नगदी फसल है। यह रसोई के साथ-साथ औषधियों में भी बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद से लेकर आधुनिक विज्ञान तक इसको रोग प्रतिरोधक क्षमता भड़ाने कोलेस्ट्रॉल कम करने और संक्रमण से लड़ने में कारगर माना गया है। खेती के नजरिये से इसकी अच्छी तरह देखभाल और तकनीकी तरीके अपनाके किसान भाई अच्छी आमदनी बना सकते है।
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) के लिए जलवायु (Climate)
लहसुन एक रबी फसल है इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। अंकुरण के समय हल्की ठंडी और गांठ बनने की अवस्था में हल्की गर्मी की जरूरत होती है। इसकी वृद्धि के लिए 12°C से 25°C का तापमान अच्छा होता है। बहुत अधिक वर्षा या पानी का रुकना लहसुन की फसल को नुकसान पहुँचता है।
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) के लिए मुख्य किस्में (Varieties)
लहसुन की उन्नत किस्मो का प्रयोग उसके उत्पादन में प्रभाव डालता है इस लिए हमेशा नयी और हाइब्रिड किस्मो का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ किस्में और उनकी विशेषताएं।
G-1: इसकी गांठे सफेद रंग की होती है और व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त है।
Agrifound white (G-41): इसकी गांठे बड़ी होती है और इसमें रोग प्रतिरोधकता भी ज्यादा होती है।
Yamuna safed (G-282): ये किस्म अपनी अधिक उपज के लिए जानी जाती है।
Bhima purple: इसकी गांठे बैंगनी रंग की होती है और इसको लम्बे समय तक भंडारित करके रखा जा सकता है।
Local/desi: इसको घरेलू उपयोग में लिया जाता है और इस किस्म का उपयोग खास तौर पर मसालों के लिए किया जाता है।
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for the garlic cultivation
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन अधिक ऊपज के लिये जीवांशयुक्त दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सबसे उपयुक्त होती है। खेत को 4 से 5 बार अच्छे से जोत लें (10-15 सेमी की गेहेराई तक) उसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भूरभूरी बना ले।
खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizers)
गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट – 80 से 120 क्विंटल प्रति एकड़
नाइट्रोजन – 30 से 40 कि.ग्रा. प्रति एकड़
फास्फोरस – 20 से 25 किलोग्राम प्रति एकड़
पोटाश – 25 से 30 किलोग्राम प्रति एकड़
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) में उर्वरक अनुप्रयोग की विधि (Fertilizer application)
वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) या गोबर की खाद का प्रयोग रोपाई से 20 दिन पहले करें और फिर खेत की ग़हरी जुताई करें। नाइट्रोजन की मात्रा को तीन बराबर हिस्सों में बाँट लें फिर एक भाग नाइट्रोजन एवं फास्फोरस, पोटाश तथा ZOTAL-ZN (Chelated Zinc as Zinc Glycine) की पूरी मात्रा मिट्टी में अंतिम जुताई या रोपाई के दो दिन पहले मिला दें। नाइट्रोजन की शेष मात्रा टॉपड़ेसिंग के समय इस्तेमाल की जाती है। पहला टॉपड़ेसिंग 25 से 30 दिन के बाद खेतों से खरपतवार निकालकर सिंचाई करने के बाद और दूसरा टॉपड़ेसिंग पहले टॉपड़ेसिंग के 40 से 50 दिन के पश्चात करें ।
बुवाई का समय (Time of sowing)
लहसुन की बुवाई 20 सितम्बर से 20 नवम्बर तक कर देनी चाहिए।
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) के लिए बीज दर और बुवाई की विधि (Seed rate and Method of sowing)
लहसुन के एक कन्द में कई छोटी-छोटी कलियाँ (गुच्छियाँ) होती हैं, जिन्हें जवा या लौंग कहा जाता है। इन्हीं लौंग को गांठों से अलग करके बुवाई की जाती है। बुवाई के लिए 2 क्विंटल जवों की आवश्यकता होती है जिनकी मोटाई 8 से 10 मि. मी. हो वैसे जवों को लगाना चाहिए। बुवाई के पहले खेत को छोटी क्यारियों में बाँट देते हैं। लौंग को क्यारियों में डिबलिंग के द्वारा डालते है। अच्छी ऊपज प्राप्त करने के लिए जवों को 10-15 सेमी. पंक्ति से पंक्ति, 7-8 सेमी. जवा से जवा से की दूरी तथा 2-3 सेमी की गहराई पर रोपाई करनी चाहिए। रोपाई करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि कलियों का नुकीला भाग उपर रखा जाये।
सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन
लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) में पहली बार सिचाई 8-10 दिन के बाद करनी चाहिए उसके बाद हर 10-15 दिन के अंतराल पर जरूरत के हिसाब से सिचाई करें। खरपतवार को खुरपी या हाथ की सहायता से हटा दें या फिर किसी खरपतवारनाशी का उपयोग करें जैसे की BULDAN CS (Pendimethalin 38.7% CS) यह चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार को ख़तम करता है ताकि वह फसल के जरूरी पोषण को न खींचे।
फसल सुरक्षा (Crop protection)
कीट (Pest)
थ्रिप्स (Thrips) यह कीट आकार में बहुत छोटे होते है और यह पत्तियों एवं तनों से रस चुसते हैं जिससे उन पर धब्बे (spots) पड़ जाते हैं। थ्रिप्स से बचाव के लिये LAMRON CS (Lambda Cyhalothrin 4.9% CS) का छिड़काव करें।
रोग (Diseases)
नील लोहित धब्बे (Purple blotch) रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग से बचाव के लिए TIRAAN-T (Azoxystrobin 11% + Tebuconazole 18.3 % SC) दो से तीन छिड़काव करें।
मृदु रोमल फफूंदी ((Downy mildew) इसमें पत्तियों की सतह पर एवं डंठल पर बैगनी रंग के रोयें उभर आते हैं। इसके रोकथाम के लिए CLAUN (Carbendazim 12% + Mancozeb 63% WP) के दो छिड़काव करें।
कटाई और भंडारण (Harvesting and Storage)
लहसुन की फसल खुदाई (Harvesting) के लिए तयार होने में 130 से 180 दिन लगाती है। जब पौधे की पत्तिया पिली पड़ने लगे तो सिचाई बंद कर देनी चाहिए जिससे की लहसुन खुदाई के लिए तयार हो जाएगी और फिर उसकी खुदाई कर लेनी चाहिए । इसके बाद उसको 3-4 दिनों तक छाया में सूखा देना चाहिए। उसके बाद 2-3 सेमी. छोड़कर पत्तियाँ को गांठो से अलग कर लेते हैं। फिर उनको अच्छे से सूखने के बाद 70 प्रतिशत नमी पर 6-8 महीनो के लिए भंडारित किया जा सकता है। 6 से 8 महीनों भण्डारण करके रखने में 15 से 20 प्रतिशत तक नुकसान सुखने से होता है। पत्तियों के साथ बण्डल बनाकर रखने से कम नुकसान होता है।
निष्कर्ष
यदि लहसुन की खेती (Lahsun ki kheti) वैज्ञानिक विधियों, सही किस्मों के चयन, उचित पोषण प्रबंधन, समय पर सिंचाई और फसल सुरक्षा उपायों के साथ की जाए, तो इससे उत्कृष्ट उपज और मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
लहसुन की खेती के दौरान कुछ सावधानियां जैसे – उचित बीज चयन, टॉप ड्रेसिंग का सही समय, फसल की कटाई और भंडारण की विधि इन पर विशेष ध्यान देकर नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है।
Frequently Asked Questions (FAQs)